गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

शहादत मेरी....

रंजिश ए गम की कहानी है...
दस्तक दे रहा बुढ़ापा जा रही जवानी है...
शहादत मेरी,
कमसिन सोला साला की है...
निकला था जब मेरे कुंवारेपन का कारवाँ...
आतिशबाज़ी और बेन्ड्बाजे की धुन में मदहोश था जहाँ...
वो बारात घर नहीं, था मज़ार ए कुँवारा
बड़े बुजुर्गों ने सर पर हाथ फेरा...
कहा..भगवान भला करे तेरा...
खुश रहो...
मज़े से रहना..
तेरी किस्मत में अब है बस सहना...
ऐसा ही कुछ था सभी ने कहा...
उनका मतलब मैं अब समझा ...
खुशियाँ काफूर हैं सब...
भगवान का ही सहारा है अब...
बारात घर की सजावट देख यही उद्गार निकलते हैं...
शहीदो की मज़ारो पे लगते मेले हैं... 

खुश रहो अहले वतन अब हम तो गये गुजरेले हैं...

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