शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

आस...? एक बेहतर कल की....

वन्दे मातरम....नूतन वर्षाभिनंदन....


फिसल गया वक्त मुट्ठी से रेत के मानिंद...

बीते पल का गम या आने वाले पल की खुशियाँ ...

मनाओ आज भी ...कल भी....

फिर मनाएंगे मातम गुजर गए पल का...कुछ लोग...

नव पल की खुशियों में खो जायेंगे कुछ लोग....

नहीं बदला समय बहुतों के लिए...

जिन्हें -

कल भी कल की चिंता थी...

आज भी कल की चिंता है...

कल भी कल की चिंता रहेगी...

क्या हम उनके लिए कुछ बदल पाएंगे कल ...?

क्या दे पाएंगे उन्हें हम आस...?

एक बेहतर कल की....

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

शहादत मेरी....

रंजिश ए गम की कहानी है...
दस्तक दे रहा बुढ़ापा जा रही जवानी है...
शहादत मेरी,
कमसिन सोला साला की है...
निकला था जब मेरे कुंवारेपन का कारवाँ...
आतिशबाज़ी और बेन्ड्बाजे की धुन में मदहोश था जहाँ...
वो बारात घर नहीं, था मज़ार ए कुँवारा
बड़े बुजुर्गों ने सर पर हाथ फेरा...
कहा..भगवान भला करे तेरा...
खुश रहो...
मज़े से रहना..
तेरी किस्मत में अब है बस सहना...
ऐसा ही कुछ था सभी ने कहा...
उनका मतलब मैं अब समझा ...
खुशियाँ काफूर हैं सब...
भगवान का ही सहारा है अब...
बारात घर की सजावट देख यही उद्गार निकलते हैं...
शहीदो की मज़ारो पे लगते मेले हैं... 

खुश रहो अहले वतन अब हम तो गये गुजरेले हैं...

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

मोक्ष की भिक्षा...

ए ऊपर वाले तेरा भी खेल निराला...
बनवाये तुने मस्जिद गिरजा तो कहीं शिवाला....
तुझे पाने भटक रहा हर जगह आदम है...
और तू , नाजाने कहाँ छिपा बैठा है....?
लड़ रहा आदम तुझे खुश करने को...
क्या वो मरता है तभी तू खुश होता है...?
अगर ऐसा है , तो ला जलजला...! !
आ जाये आज ही क़यामत....! !
खोल शिव नेत्र तीसरा...! !
और देखे हम भी प्रलयंकर का प्रलय...
नहीं चाहिए अब और जीवन अभय...
गर मैं गलत हूँ तो मिटा दे भेद सभी...
और लेना है अवतार कल्कि , तो ले अभी...
पीड़ित मानवता कब तक करेगी प्रतीक्षा...
कब तक इत उत लेती रहेगी दीक्षा...
जीने के लिए तेरे नाम पर बहुत मांगी है
भिक्षा ! !
आज तू ही दे मोक्ष की भिक्षा...
आज तू ही दे मोक्ष की भिक्षा...