बुधवार, 10 नवंबर 2010

रंग बदलता इन्सां !!

चटक आसमान !
कड़क धूप !
सौन्धी मिट्टी की महक !
चिड़िया की चह्चहाट !
कहीं रहट की चररर चररर !
कहीं बैलगाड़ी की चडचु चडचु !
कहीं उड़ती हुई तितली !
कहीं दूर से कोई देता हूलारे !
तो किसी खेत की मुंडेर पर रंग बदलता गिरगिट !
अब कहाँ दिखता इस कंक्रीट के जंगल में?
दिखता है -
तो बस रंग बदलता इन्सां !!
कुछ कतरा धूप !!
थोड़ी पेड़ की छाँव !!
थोड़ी सी ज़मीन !!
थोड़ा सा जमीर !!
थोड़ी सी इंसानियत !!
थोडा सा आस्मां !!
और 
रंग बदलता इन्सां !! 
रंग बदलता इन्सां !! 

3 टिप्‍पणियां:

  1. बदलते परिवेश से रूबरू कराती रचना ...सुंदर है मनोज भाई

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  2. manoj ji sarvpratham blog kholne ke liye badhai.. aur kavita umda .. sabse alag mujhey aapka ye dhwani kaa observation laga....bahut accha laga ..कहीं बैलगाड़ी की चडचु चडचु !
    ..sundar..

    aap mere blog mei bhi jayen.. aur apna vichar rakhen..

    जवाब देंहटाएं