एक सपना आँखों के सामने ...
रक्त रंजित वसुंधरा...
मारो काटो...मत छोडो...
की गूंज अनुगूँज का कोलाहल ...
खच की आवाज़ आई...
रक्त छींटो की एक लकीर खिंच गयी चेहरे पर...
यकायक आँख खुली...
उदास थी सुबह...
कोई हलचल नहीं...
सोने की फिर कोशिश में ...
नजर पड़ी रोशनदान पर
जहाँ धूप की किरणों में अंधेरा था...
चिड़िया चुप थी...
चिड़ा जमीं पर बैठा मातम मना रहा था...
अपने बिखरे घोंसले का...
टूटे अण्डों का...
कुचले हुए बच्चे का...
अपने बिगड़े भविष्य का..
कुछ अधबुने सपनो का...
मैं उठ बैठा ...
अब शायद ना सो पाऊं...
रक्त छींटों के साथ तो कभी नहीं...
रक्त रंजित वसुंधरा...
मारो काटो...मत छोडो...
की गूंज अनुगूँज का कोलाहल ...
खच की आवाज़ आई...
रक्त छींटो की एक लकीर खिंच गयी चेहरे पर...
यकायक आँख खुली...
उदास थी सुबह...
कोई हलचल नहीं...
सोने की फिर कोशिश में ...
नजर पड़ी रोशनदान पर
जहाँ धूप की किरणों में अंधेरा था...
चिड़िया चुप थी...
चिड़ा जमीं पर बैठा मातम मना रहा था...
अपने बिखरे घोंसले का...
टूटे अण्डों का...
कुचले हुए बच्चे का...
अपने बिगड़े भविष्य का..
कुछ अधबुने सपनो का...
मैं उठ बैठा ...
अब शायद ना सो पाऊं...
रक्त छींटों के साथ तो कभी नहीं...
बहुत ही उम्दा रचना भाईसाहब ...ब्लॉग शुरू करने पर ढेरों शुकाम्नाएं ..!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा रचना भाईसाहब ...ब्लॉग शुरू करने पर ढेरों शुभकामनायें ..!!
जवाब देंहटाएं(हो सके भाईसाहब तो ये वर्ड वेरिफिकेशन हटा दीजियेगा..जिससे लोगों को टिपण्णी करने में आसानी होगी.,,!!)